🌞श्री कु.० राघव प्रांजल मठ 🌞

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श्रीमद् शंकराचार्य द्वारा श्री गणेश की स्तुति

मुद्रा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्। अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् । सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञजरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् । कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।। अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् । प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्। हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।। महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् । अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।

मंगलमुर्ती मोरया॥

राम जन्म

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।
माया गुअन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता ॥

रामायण वेदिक एडुकेशन्स की आवश्यकता
" श्री रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का गठन इसके आदर्शों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। इसमें सम्मेलन एवं आयोजनों के माध्यम से सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है। विभिन्न विभागों द्वारा योग शिक्षण, वेदांत, उपनिषद, धार्मिक पुराण, रामायण, गायन शास्त्र तथा आध्यात्मिक विकास पर विशेष बल दिया जाता है। साथ ही, ब्राह्मण समाज की श्रेष्ठता एवं योग्यता की स्थापना का भी विचार किया गया है।

श्री स्वराज प्रकाश जी के नेतृत्व में बालकों की शिक्षा, ब्राह्मणिक संस्थाओं का प्रबंधन तथा मंडल समिति, हरिद्वार में आध्यात्मिक समाज द्वारा विद्या अध्ययन की योजना बनाई गई है। इसके माध्यम से समाज को विशिष्ट ब्राह्मणिक व्यवस्था हेतु धार्मिक कार्यों में प्रेरित किया जा रहा है।

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रामायण वैदिक फाउंडेशन की स्थापना का उद्देश्य वैदिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा उसकी विभिन्न शाखाओं के विषयों के माध्यम से समाज को लाभान्वित करना है। इसके महत्वपूर्ण बिंदुओं में नारी शिक्षा और प्रेरणा को विशेष दृष्टि से रखा गया है। इसी अनुरूप कम्प्यूटर एवं आध्यात्मिक संभावनात्मक योजनाओं की स्थापना की गई है। भूमि व्यवस्था के अंतर्गत ७००—८०० फुट तथा १२०० स्क्वायर फुट क्षेत्रफल में काशी की भूमि का चयन किया गया है और इसे संगी एवं नगरी से जोड़ा गया है।

काशीखंड, स्वरद महापुरुष का एक खंड है, जिसमें काशी का परिचय, महानात्मा तथा उसके आध्यात्मिक स्वरूप का विशेष उल्लेख मिलता है। काशी को आनंदवन एवं वाराणसी नाम से भी जाना जाता है। इसकी महिमा का आकलन स्वयं वेदमंत्र विवेकवान ने काशी पर्वती में भी किया था, जिसे उनके पुत्र नातिबक (स्वंद) ने अपनी माँ श्री गौतर देवी को सुनाया था। उसी महीने के व्रत करने से विशेष अंतर माह फल प्राप्त होते हैं। हाल ही में स्क्वायर फुट भूमि का चयन किया गया है, जिसमें : २१,०००, १०००, ५०० ऊपर हैं। इसके माध्यम से काशी में वृद्धों की सेवा हेतु समितियों का गठन किया गया है। इसमें ब्राह्मणों, चिकित्सकों, अभियंताओं, कलाकारों, वेदज्ञ आचार्यगण तथा प्रमुख मण्डली का चयन किया जाता है। ब्राह्मण समाज को प्रेरित किया जाता है।

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इसमें काशी अर्थात काशी तीन खंडों में विभाजित है — केदारखंड, विश्वेश्वरखंड और ओंखांडखंड। काशी का यह महान कार्य है। विद्वानजन कहते हैं कि यदि शिव का कोई वास्तविक कार्यस्थल पृथ्वी पर है, तो वह केवल काशी ही है।

१२ महिमा स्थलों का कार्य वहता विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थापित है। मान्यता के अनुसार, महादेव ने अपनी पार्वती को दक्षिणा स्थान प्रदान किया था। लेकिन इस स्थान को छोड़कर अन्य किसी जीविका के लिए कोई और स्थान निर्धारित नहीं किया गया है। यह स्थल वीपीआर २७.९४८१६, लॉन्गीट्यूड ८०.७५७५०७ पर स्थित है।

रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन के संरक्षक प्रातःस्मरणीय वेदचूडामणि पं० श्री स्वराज प्रकाश जी की ऊर्जा को ध्यान में रखते हुए ब्राह्मण, धर्मगृहस्थ, गृहगुणी एवं जनहितैषी सज्जनों, देवियों तथा गुरु कार्यशाला के आदेशों हेतु विनम्र निवेदन है कि मानव एवं भारतीय संस्कृति के पोषण तथा धर्म-अवधारण की समुचित शिक्षा एवं विद्या प्रदान की जाए।

परिवार एवं संस्कारों से संपन्न परिवारों की श्रेष्ठता हेतु, बच्चों की बाल्यकालीन शिक्षा एवं शिक्षण व्यवस्था के संचालन के लिए रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा ब्राह्मणों को प्रेरित किया जाता है। इच्छुक सभी ब्राह्मण अपनी सेवाएँ वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन को प्रदान कर सकते हैं। श्री रामायण फाउंडेशन की स्थापना विक्रम संवत २०७८, तिथि ११७६ पुष्य कृष्ण, नवनीत चतुर्दर्शा फाल्गुनी माह में की गई। इसका उद्देश्य आदर्श ब्राह्मण परिवारों के लिए शिक्षा एवं संस्कारों की ऐसी व्यवस्था करना है, जिससे ब्राह्मण समाज का शिक्षा के क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित हो सके।

तुर्शील सिंह कृत श्री रामचरितमानस की स्थापना के लिए वर्तमान में नियमित श्रीरामायण वेदपाठ एवं बालकों की प्रतिभा को प्रेरित किया जा रहा है। श्रीरामायण फाउंडेशन ने वर्ष २०२२ में श्रीरामायण वेदपाठ एवं बाल वेद पाठशाला को जोड़ा। समाज में वेद का प्रचार-प्रसार करने हेतु हिंदी व्हाट्सऐप समूहों में प्रस्तुतिकरण जोड़ा गया, जिसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। रामायण फाउंडेशन को शास्त्र, धर्म, संस्कार, परिचय एवं आत्मीयता भाव से आमंत्रित किया गया। फाउंडेशन के लिए यह गर्व का विषय है कि पूर्व में भी गोस्वामी तुलसीदास कृत वेदों का अनुशीलन कर श्रीरामायण का विशेष स्थान निर्मित किया गया। इसमें १००१ से ५०० पुरुषों को अर्पित करते हुए चयनित किया गया है। आप सभी के सहयोग एवं आदर्शपूर्ण समर्पण हेतु रामायण फाउंडेशन परिवार आपका ऋणी है। हृदय से आभार रहेगा और विश्वास है कि आपका विशेष सहयोग एवं अमूल्य परामर्श सदैव अपेक्षित रहेगा।

🪷मठ का गठन🪷

शारदीय नवरात्रि की घटस्थापना दिवस, सोमवार २२ सितंबर २०२५ को प्रातः ०६:०९ से ०८:०६ बजे तक, हस्त नक्षत्र और शुक्ल पक्ष योग में कलश स्थापना हुई। इसी पावन बेला पर श्रीयंत्र पूजन, अखंड सुवेद, देवाधिदेव महादेव जी त्रिवेदीश्वर जी के रुद्राष्टकम द्वारा कार्यक्रम पूर्ण हुआ। उसी समय मठ की स्थापना आदरणीया श्रीमती रमा देवी जी द्वारा की गई, जिसमें कला, सुंदर विचार, चित्र एवं मॉडल के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान की जीवंत प्रस्तुति दी गई। इसमें मानव आकृतियाँ, रंगोली, आरेख आदि को महत्व दिया गया। इसके लिए प्रबुद्धजनों के मार्गदर्शन से सहयोग लिया गया। सनातन पाठ्यक्रम एवं कार्यशालाएँ आयोजित की जा रही हैं ताकि एक आध्यात्मिक जीवनशैली का निर्माण हो सके। जिज्ञासु एवं विवेकवान सज्जनों के लिए संस्कृत, ज्योतिष और सनातन कर्मकाण्ड विषयों के प्रकाशन वाराणसी, मथुरा-वृंदावन, श्री अयोध्या धाम, श्री ऋषिकेश धाम, हरिद्वार, कोलकाता, मुंबई, कोयंबटूर, वृंदावन तथा काशी आदि प्रमुख स्थानों के कार्यालयों में उपलब्ध कराए जाते हैं। रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन इन संस्थानों से सतत संपर्क में रहता है ताकि संवाद एवं मार्गदर्शन निरंतर प्राप्त हो सके। प्रत्येक रविवार को श्री रुद्राष्टकम द्वारा पूर्ण अर्चना की जाती है। श्रुति और स्मृति के आधार पर आध्यात्मिक विषयों पर विचार-विमर्श बौद्धिक संगोष्ठी में होता है, जिसमें समाज का कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है। स्वच्छता एवं अनुशासन का पालन आवश्यक है। यहाँ श्रीरामायण, श्रीमद्भागवत कथा, श्रीमद्भगवद्गीता, वेदों पर चिंतन-मनन के साथ-साथ संस्कृत ज्ञान, नक्षत्र विज्ञान और वैदिक खगोल यंत्रों के प्रयोग द्वारा अध्ययन कराया जाता है। साथ ही, आधुनिक विकास को देखते हुए कंप्यूटर शिक्षा की भी व्यवस्था है। संपूर्ण कार्य श्रीरामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन के संरक्षकों के निजी कोष और समाज के स्वैच्छिक दान से संचालित होता है। दान ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यमों से दिया जा सकता है। गुप्त दान केवल आवश्यक पुस्तकों, फर्नीचर या भौतिक वस्तुओं के रूप में स्वीकार किया जाता है। मठ द्वारा दिए जाने वाले पत्रक और सम्मान संस्कृत भाषा में होते हैं। प्रवेशार्थी केवल व्यक्तिगत जीवन ज्ञान-वर्धन के लिए ही प्रवेश लें। यह संस्था किसी भी प्रकार की सरकारी नौकरी, कोचिंग या पद का आश्वासन नहीं देती है। संस्था के कार्यों में — 1. श्री गणेश एवं श्री लक्ष्मी की भ्रंश मूर्तियों का विधिवत विसर्जन, 2. कुष्ठ रोगियों की सेवा, 3. दुर्बल वर्ग की कन्याओं एवं माताओं को स्वावलंबी बनाना, 4. योग द्वारा आरोग्य प्रदान करना, 5. वैदिक प्रज्ञा के अनुरूप ज्ञान-विज्ञान पर आधारित परीक्षाएँ आयोजित करना, शामिल हैं, ताकि आध्यात्मिक ज्ञान में निरंतर वृद्धि हो। 👉 रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन एक एनजीओ है जिसके अंतर्गत मठ का गठन हुआ है। दान पूर्णतः स्वैच्छिक है। उद्देश्य है — "सा विद्या या विमुक्तये"। यह केवल निजी कोष एवं दान से संचालित है और मानवता की आध्यात्मिक सेवा के लिए समर्पित है। हर हर महादेव !! इति !!

🪷परिचय🪷 (विधिक/प्रशासनिक आज्ञानिरूपण सन्दर्भ में) 👉 ध्यान दे यह संस्थान किसी भी प्रकार की सरकारी सेवा दिलाने का न कार्य करती हैं यह केवल आवश्यक निजी पूंजी के आधार पर करती है न कि किसी भी प्रकार के लोभ दे कर कार्य करती हैं न किसी से धन, दान, दक्षिणा को आगंतुक की स्वैच्छिक दान लेती है ताकि वैदिक ज्ञान को बढ़ावा मिल सके इसको निजी कोष द्वारा निर्मित किया गया है इसका सम्मान पत्रक संस्कृत में निर्गत किया गया है केवल सनातन वैदिक कार्यों के लिए है जो केवल ज्ञान देने का कार्य करती है🙏 संस्था: रामायण एजुकेशन फ़ाउंडेशन पूर्ण कार्यालय पता: आरविंद नगर कॉलोनी, 10/14, राजगढ़ वार्ड, ज़िला लखीमपुर खीरी – 262701 (उ.प्र.) नवनिर्मित भवन श्री रामायण भवन , गोलाकोरन धाम , राष्ट्रीय राज्यमार्ग असम मार्ग पर मठ और कार्यशाला गठित की गई संस्था का पंजीकरण एनजीओ अधिनियम 1860 की धा0 21 के अंतर्गत किया गया है। दिनांक 12-02-2024 को पंजीकरण हेतु स्मृतिपत्र, नियमावली, शपथ-पत्र आदि अभिलेख प्रस्तुत किए गए। प्रमाण पत्र शीघ्र निर्गत करने का अनुरोध माननीय उप-पंजीयक, फर्म्स सोसाइटीज़, उत्तर प्रदेश, मण्डल लखनऊ को किया गया, जिसे स्वीकार किया गया। संस्था को पंजीकरण संख्या: एल0के0 एच0 07740/2023-24 प्रदान की गई। यह पंजीकरण उत्तर प्रदेश में प्रवर्त नियमों के अनुसार रजिस्टर किया गया है संस्था ने स्व-वित्तपोषित आधार पर अपना नया कार्यालय “रामायण भवन” में स्थापित किया है। जहां मठ स्थापना की गई है समस्त गतिविधियों की पूर्ण देख-रेख (सभापति) श्री शौरभ मिश्र, श्रीमती रमा दीक्षित (सचिव/कोषाध्यक्ष) तथा अन्य सदस्यों द्वारा की जाती है। रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित विशेष सभा की बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि स्मृतिपत्र में उल्लिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु “श्री राघव प्रांजल मठ” की संरचना की जाए, और उन्हीं उद्देश्यों के क्रियान्वयन के लिए रामायण वैदिक एजुकेशन फ़ाउंडेशन की गतिविधियाँ इसी मठ के अंतर्गत संचालित की जाएँ इसका प्रबन्ध किया गया जोकि वर्तमान में संचालित है संस्था विधिसंगत रूप से पंजीकृत है, यह अपना स्व-वित्त पोषित कोष द्वारा कार्यालय एवं कार्यशाला , सेमिनार, संगोष्ठी संचालित करती है, और सामान्य सभा के निर्णयानुसार “श्री राघव प्रांजल मठ” के माध्यम से अपने उद्देश्यों का क्रियान्वयन करेगी। यह केवल वैदिक ज्ञान और विज्ञान को प्रेरित करती हैं

🪷संस्था परिचय🪷

रामायण वैदिक एजुकेशन फ़ाउंडेशन के तत्वावधान में संचालित मठ का संक्षिप्त विवरण 🌞श्री कु.० राघव प्रांजल मठ 🌞 🪷मठ का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्षेत्र के समस्त जनों का सामाजिक, मानसिक, नैतिक, चारित्रिक, कलात्मक, आध्यात्मिक एवं बौद्धिक विकास करना। श्री कु.० राघव प्रांजल मठ (रामायण वैदिक एजुकेशन फ़ाउंडेशन द्वारा गठित मठ) के माध्यम से – वैदिक साहित्य, संस्कृत, ज्योतिष, वेद, पुराण, शास्त्र व ग्रंथों पर कार्यशालाएँ और संगोष्ठियाँ आयोजित करना। वर्तमान में फैली हुई अशांति, अशिक्षा, असमानता, अज्ञानता को वैदिक ज्ञान के द्वारा दूर करना। निःशुल्क चिकित्सा सेवा (सूर्य चिकित्सा एवं प्राकृतिक औषधियों से/ व्यायाम से) पूर्ण करना है। दुर्बल विद्यार्थियों को वैदिक शिक्षा एवं पुस्तक सहायता। वैदिक तीर्थ-परिभ्रमण, गौ-सेवा, जल-मद्दे, अन्न-सदावर्त, जल-विहार उत्सव। प्रभु श्री जगन्नाथ की यात्रा, विजयदशमी कार्यक्रम, कपड़ा वितरण, श्रीराम नवमी उत्सव, श्री रामलीला इत्यादि को पूर्ण करना है। वैदिक आचार्यों के माध्यम सनातन व राष्ट्रीय पर्वों पर कार्यक्रमों का आयोजन। उत्तर प्रदेश एवं भारतभर में संगोष्ठियों व वार्षिक सेमिनारों का आयोजन। सत्य सनातन वैदिक धर्म के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करना और उसमें व्याप्त अंधविश्वास व कुरीतियों का निवारण करना। वैदिक सप्त-ज्ञान, वेदों के उपदेश, उनकी महत्ता, आदर्श परंपरा, पवित्रता व विचारों की जागृति को विद्वानों, आचार्यों व महोपाध्यायों के माध्यम से प्रसारित करना। समाज सुधार के लिए – छुआछूत, जातिवाद, बाल विवाह प्रथा, कन्या हत्या, यौन उत्पीड़न, महिला शोषण और दहेज प्रथा का निवारण। जागरूकता शिविरों का आयोजन। निर्धन, अनाथ व तलाकशुदा युवकों-युवतियों हेतु दहेज-मुक्त सामूहिक विवाह का आयोजन। महिलाओं की सुरक्षा हेतु – बालिकाओं, कामकाजी महिलाओं, अकेली रहने वाली एवं तलाकशुदा महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और शोषण को रोकना। उन्हें सम्मानित न्याय दिलाने में सहयोग करना। लखीमपुर खीरी में समस्या समाधान आयोजन और थाना दिवस, नि:शुल्क विधिक परामर्श प्रदान करना। स्वास्थ्य व नशा मुक्ति – धूम्रपान और मद्यपान निवारण कार्यक्रम। नि:शुल्क स्वास्थ्य परामर्श। शिक्षा व शोध कार्य – वैदिक पुस्तकालय, वैदिक सूर्य शाला,वाचनालय और प्रयोगशाला की स्थापना की गई है। विद्यार्थियों के लिए कम्प्यूटर शिक्षा, टाइपिंग, स्कैनोग्राफी, शिल्पकला, हस्तशिल्प, सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, सूत की चरखा एवं तकली आदि का प्रशिक्षण। ललित कला, संगीत, वीणा वादन, मृदंग वादन, करताल वादन आदि का ज्ञान उपलब्ध कराना। मार्गदर्शन एवं सहयोग – प्रभु प्रेमी संघ, वृंदावन जनपद मथुरा,शांति कुंज जनपद हरिद्वार (राज्य उत्तराखंड), वेल्लूर मठ कोलकाता (पश्चिम बंगाल), ईशा फ़ाउंडेशन कोयंबत्तूर राज्य तमिलनाड़ू, श्री मलूक सेवा संस्थान वृंदावन, राज्य मथुरा उत्तर प्रदेश,इस्कॉन मंदिर वृंदावन जनपद - मथुरा उत्तर प्रदेश एवं राज्य महाराष्ट्र, श्री प्रेम भूषण जी महाराज श्री हनुमत सेवा समिति जनपद -कानपुर, श्री प्रेमानंद जी महाराज श्री हित राधा केली कुंज, वृंदावन जनपद- मथुरा,श्री चैतन्य गौड़िया मठ, बाघ बाजार -राज्य कोलकाता,यात्रा धाम, ब्रजरसिक एवं सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पुस्तकालय विभाग (काशी) के आचार्यों व संस्थानों से मार्गदर्शन (ईमेल व पत्राचार द्वारा) प्राप्त कर कार्यों को आगे बढ़ाया जा रहा है। वंचित वर्गों के लिए – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और शोषित वर्ग के बच्चों एवं महिलाओं के लिए विशेष शैक्षिक और कल्याणकारी योजनाएँ। उन्हें आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक परंपरा से जोड़ना। 👉 इस प्रकार, श्री राघव प्रांजल मठ का उद्देश्य है – वैदिक ज्ञान, शिक्षा, संस्कृति, समाज सुधार और महिला सशक्तिकरण को आगे बढ़ाना।

रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का अर्थ इस प्रकार हो सकता है: - रामायण: रामायण एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है, जो भगवान राम की कथा को बताता है। यह ग्रंथ हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है और इसके पात्र और कथाएं भारतीय संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं। - वैदिक: वैदिक शब्द वेदों से संबंधित है, जो प्राचीन भारतीय ग्रंथ हैं जिनमें धार्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक ज्ञान का वर्णन है। वैदिक परंपरा हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण शाखा है। - एजुकेशन फाउंडेशन: एजुकेशन फाउंडेशन का अर्थ है शिक्षा के लिए एक संस्था या संगठन। यह संस्था शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है और इसका उद्देश्य शिक्षा को बढ़ावा देना और लोगों को शिक्षित करना होता है।

रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का उद्देश्य:

- शिक्षा और संस्कृति का प्रसार: रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का उद्देश्य शिक्षा और संस्कृति का प्रसार करना हो सकता है, जिसमें रामायण और वैदिक परंपरा के ज्ञान को शामिल किया जा सकता है। - नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा: इस फाउंडेशन का उद्देश्य नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करना भी हो सकता है, जिसमें रामायण और वैदिक परंपरा के मूल्यों और सिद्धांतों को शामिल किया जा सकता है। रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का उद्देश्य शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में काम करना और लोगों को रामायण और वैदिक परंपरा के ज्ञान से लाभान्वित करना हो सकता है।

काशी के बारे में शिव जी का संस्कृत और ज्योतिष मंत्र में कई महत्वपूर्ण बातें लिखी गई हैं: संस्कृत मंत्र 1. "ॐ नमः शिवाय": यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है, और काशी में इसका महत्व बहुत अधिक है। 2. "काशी विश्वनाथाय नमः": यह मंत्र काशी विश्वनाथ मंदिर को समर्पित है, जो भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है। ज्योतिष मंत्र 1. "ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पति": यह मंत्र ज्योतिष में अग्नि तत्व को दर्शाता है, जो काशी के ज्योतिषीय महत्व को उजागर करता है। 2. "ॐ नमो रुद्राय": यह मंत्र भगवान शिव के रुद्र रूप को समर्पित है, जो काशी में ज्योतिषीय महत्व रखता है। काशी का ज्योतिषीय महत्व काशी का ज्योतिषीय महत्व बहुत अधिक है, और यहाँ के ज्योतिषियों ने कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। काशी के ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों और नक्षत्रों का महत्व है, और यहाँ के ज्योतिषी इनके बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। काशी की संस्कृत और ज्योतिष परंपरा काशी की संस्कृत और ज्योतिष परंपरा बहुत पुरानी है, और यहाँ के विद्वानों ने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। काशी की संस्कृत और ज्योतिष परंपरा ने भारतीय संस्कृति और धर्म को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। काशी खण्ड में भगवान शिव ने कई महत्वपूर्ण बातें बताई हैं: काशी की महिमा भगवान शिव ने काशी की महिमा के बारे में बताया है कि यह शहर उनका निवास स्थान है और यहाँ के लोगों को मोक्ष प्राप्त करने का अवसर मिलता है। काशी में मृत्यु का महत्व भगवान शिव ने बताया है कि काशी में मृत्यु होने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है, और यहाँ के लोगों को अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने का अवसर मिलता है। काशी के तीर्थ स्थल भगवान शिव ने काशी के विभिन्न तीर्थ स्थलों के बारे में बताया है, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, और अन्य प्रमुख मंदिर शामिल हैं। काशी की पूजा और अनुष्ठान भगवान शिव ने काशी में पूजा और अनुष्ठानों के महत्व के बारे में बताया है, जिनमें विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा विधियाँ शामिल हैं। काशी का आध्यात्मिक महत्व भगवान शिव ने काशी के आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया है, जो इस शहर को एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है। काशी का आध्यात्मिक महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है, और यहाँ के लोगों को अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने का अवसर मिलता है। 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🪷इसके पर्व आचार्यों का संक्षिप्त विवरण उक्त है 🪷 🪷1. प्रथम आचार्य ब्रह्मलीन (डॉ)श्री तारा चंद्र जी वेद माता गायत्री उपासक , आर्य समाज में सक्रिय योगदान 🪷2. द्वितीय आचार्य ब्रह्मलीन श्री रामगोपाल जी ( अध्यापक) 🪷3. तृतीय आचार्य ब्रह्मलीन श्री स्वराज्य प्रकाश जी (वेद माता गायत्री परिवार में सक्रिय योगदान, आर्य समाज से जुड़े हुए थे 🪷4. चतुर्थ आचार्या ब्रह्मलीन पूज्यनीय दादी जी श्रीमती सुमित्रा देवी जी ( शिक्षा के महत्व पूर्ण मानते हुए सेवा प्रदान की) 🪷5. पंचम आचार्य ब्रह्मलीन श्रीमती शान्ति देवी जी ( श्री राम चरित मानस, अर्चना, भागवत कथा, वेद माता गायत्री पूजन आध्यात्मिक ज्ञान से वर्धन किया( 🪷6. षष्ठ आचार्या कुo रूचि देवी जी ( ललित कला मठ में कला और मूर्तिकला पर विशेष योगदान दिया साथ में विधिक सेवाओं में कार्य में सलग्न है) 🪷 सप्तम आचार्य श्री एo कुमार जी ( अपने श्रीमद्भगवद्गीता परीक्षा के प्रति समर्पित किया और सनातन कर्मकाण्ड में विशेष रूप से कार्य किया और चिकित्सा आपथेलमिक कानपुर, तथा आपकी रुचि वैदिक खगोल पर कार्य किया) 🪷 अष्टम् आचार्या श्रीमती रमा देवी जी (अपने चित्र कला, वेद माता गायत्री पूजन, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति समर्पित हैं वर्तमान में आप सभी के साथ रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन परिवार की देखरेख में संलग्न हैं) 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞 वर्तमान में संचालित मठ में केवल पांच आचार्य के माध्यम से समाज को सनातन की और उन्मुख है साथ ही साथ केवल एक स्वयं सेवकों की तरह स्वैच्छिक श्रम दान, स्वेच्छा धन दान, स्वैच्छिक समय दान कर रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा गठित मठ की देख रहे हैं और कार्य भी कर रहे हैं इसके लिए वो मठ में अपना अमूल्य योगदान देते हुए प्रफुल्लित और पल्लवित कर रहे जिसमें आचार्या श्रीमती रमा देवी जी और आचार्य श्री सौरभ मिश्रा जी को इस मठ के बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं जिसमें कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का विवरण है उक्तवक्त है 1. आचार्य श्री सौरभ कुमार मिश्र जी द्वारा त्रिवेणी प्रयागराज के पवित्र भूमि से मृदा द्वारा लाई गई आदि देव महादेव जी के निर्माण में आचार्य श्री (डॉ)एo कुमार जी और आचार्य श्री राम नरेश जी के द्वारा और मठ के स्वयं सेवकों द्वारा पार्वत्तिक शिवलिंग श्री त्रिवेदीश्वर जी की स्थापना की गई वर्ष 2024-25 में पूर्ण कार्य किया गया जिसके शिल्पकारों की महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है जिसके लिए आप सभी आदरणीय संरक्षक एवं सदस्य का विशेष साधुवाद 2. तदोपरांत श्री सूर्य शाला के निर्माण में आचार्य (डॉ) श्री ए0 कुमार जी के अध्ययन अनुरूप धातु टिन द्वारा पूर्ण किया गया जिसमे सभी आदरणीय स्वयंसेवक और श्री राम स्वरूप जी शिल्पकारों का महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है वर्ष 2024-25 में पूर्ण कार्य हुआ 3. आचार्य श्री सौरभ कुमार जी द्वारा एकादशी पर ध्यान देते हुए सर्वाधिक गणमान्य सज्जनों में प्रसारित एवं प्रचार किया गया तथा आचार्या श्रीमती रमा देवी जी द्वारा उसके सौंदर्यकरण का कार्य किया गया वर्ष 2024 जिसके लिए आप सभी आदरणीय संरक्षक एवं सदस्य का विशेष साधुवाद 4. वर्ष 2024 में ज्योतिष निपुण शास्त्री श्री ॐ बाजपेई जी के प्रतिष्ठान पर अस्थाई रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का जन संपर्क कार्यालय स्थापित किया गया जिसमें सनातन पुस्तकों में वर्णित ज्ञान पर वेदों, पुराण, उपनिषद्, वेदांक इत्यादि संवाद द्वारा किया जाता था 5. रामायण भवन में एक स्थान बनाने के लिए प्रयास किया गया जिसमें दो वर्ष का समय लगा वर्ष 2025 में कार्य पूर्ण होने पर भगवान् ओंकार स्वरूप शिवजी और जगत जननी पार्वती, भक्त श्री नंदी महाराज, शिव जी के परम ज्ञानी भगवान श्री विनायकजी नृत्य और परम ज्ञानी जी को स्थापित किया गया तदोपरांत मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी और अतुलित बल के धाम श्री हनुमंत जी की स्थापित किया गया जिसमे आचार्य श्री सौरभ कुमार मिश्र जी द्वारा पूर्ण किया गया जिसमें सनातन धर्म के अनुक्रम में कार्य सफलता और कुशलता द्वारा सम्पन्न किया गया 6. मठ में सुंदर विचारों और चित्रों से संपन्न किया गया जिसमें सनातन कर्मकाण्ड हेतु यज्ञ कुंड, रुद्राष्टकम हेतु अनिवार्य अर्चना और पूजन सामग्री को लाया गया जिसमें आचार्या श्रीमती रमा देवी जी का योगदान दिया गया था तब से यहां पूजन अर्चन नियमित किया जा रहा है प्रातः और संध्या नियमित रूप से विविध प्रकार से की जा रही हैं इसमें निहित कोष द्वारा पूर्ण किया गया सभी आदरणीय स्वयंसेवक, गणमान्य सज्जनों के योगदान से संभव हुआ इसके लिए सभी का साधुवाद 7. आचार्य श्री ( डॉ) एo कुमार जी द्वारा श्री राम नाम लिखने वालों को मंदिर आदि में और जन सामान्य द्वारा राम लेखन पुस्तिका का निःशुल्क विवरण किया गया और इसके उन्नयन हेतु श्री राम मंदिर अयोध्या धाम एवं श्री ऋषि केश धाम संपर्क कार्यालय पर किया गया साथ ही साथ श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा के दिन ढाई हजार दीपों द्वारा कार्यक्रम देवदेवेश्वर मंदिर में पुरोहित श्री सत्य नारायण मिश्र व पुरोहित श्री मनोज पांडेय जी की सानिध्यता में समस्त श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा के आयोजन में सभी श्री राम भक्तओ को भी ग्यारह दीप के प्रज्वलन सम्पन्न हुआ आप सभी आदरणीय संरक्षक एवं जन सामान्य को विशेष साधुवाद था उसी दिन से पवित्र वृक्षों आम, वट वृक्ष एवं पीपल के समीप रखे बुद्धि दाता श्री गणेश जी और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी जी की भ्रांश मूर्तियों को पवित्र नदियों में विसर्जित करने का कार्यभार लिया गया जोकि वर्तमान में संचालित है 8. वर्ष 2024 को आचार्यों, शास्त्रीयो एवं सदस्य जनों द्वारा विभिन्न प्रकार से वेद पाठशाला, पवित्र धामों से संपर्क डाक और ई मेल के माध्यम से किया जाता रहा गया था जो वर्तमान में संचालित है संवाद के उपरांत संस्कृत पुस्तकों को काशी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय संपर्क कर डाक द्वारा पार्सल से मंगवाया गया था जिसका कार्य वर्तमान में संचालित है और यह क्रम आज भी श्री हरि कृपा से अभ्याद्य रूप से संचालित है 9. जनपद लखीमपुर खीरी के पवित्र धामों जिसमें मृदा को इकठ्ठा कर की गई जिसमें श्री लिलुटी नाथ जी धाम, श्री देवकली धाम, श्री निमिश्रण धाम जनपद सीतापुर , श्री बैजनाथ धाम सीतापुर आदि अन्य उचित माध्यम से प्राप्त कर ज्योतिष यंत्रों, श्री रामायण कथा, श्री श्रीमद्भागवत कथा अनुरूप विभिन्न प्रकार के खण्डों में वर्णित कथा अनुरूप मिट्टी के सुंदर खंडों को मॉडल के रूप में बनाया जा रहा है और विविध प्रकार के रंगों से रंगा जा रहा है ताकि मठ में आने वाले जिज्ञासु और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रेमी जानो को सनातन कार्यशाला, संगोष्ठी, श्रुति और स्मृति के माध्यम सनातन और आध्यात्मिक लाभ मिल सके इसके साथ धार्मिक स्थानों के तैलीय चित्रों से संबंधित जानकारी भी दी जा सके जिसमें ताड़ के पत्तो की श्री हनुमंत चालीसा द्वारा पूर्ण किया गया है जिसमें सभी आदरणीय स्वयंसेवक, संरक्षक, गणमान्य सज्जनों को सनातन धर्म को पुनः जागरण किया जा रहा है इसके साथ ही साथ श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा आयोजित की जा रही हैं आधुनिक विकास में सहायक सामग्री जैसे संगणक की इंटरनेट के साथ ही साथ संगणक प्रयोगशाला पूर्ण शान्त एवं स्वच्छ सूक्ष्म एवं पूर्ण शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था, वातानुकूलित व्यवस्था की गई है मठ के विभिन्न प्रकार सनातन कर्मकाण्ड में सम्मिलित होने के पर्वो,उत्सवों, पुराणों की कथाओं का आयोजन करने का पंचांग पर मठ आधारित हैं इस मठ की स्थापना सनातन ज्ञान विज्ञान से अवगत कराना है मंगल कार्यों आप सभी आदरणीय संरक्षक, कार्यालय प्रबंध, गणमान्य सज्जनों, से सहयोग अपेक्षित हैं यह मठ केवल ज्ञान देने हेतु है कोई निर्धारित समय पर ही कार्य सम्पन्न हो ऐसा मंगल हो सभी ज्ञानी विज्ञानी हो इस मठ का सम्पूर्ण व्यवस्था में जन सामान्य के सहयोग पर आधारित हैं जिसमे प्राप्त वस्तुओं पर आधारित हैं यह मठ जन सामान्य द्वारा प्राप्त सहायता शुल्क से,व्यापारिक प्रतिष्ठान के धर्मादा पर आधारित हैं प्रत्यक्षवेतनमान, मानदेय, वेतनमान , कोष की व्यवस्था अनुरूप बना है 🦢 विशेष रूप से ध्यान दें कोई भी अव्यवस्था लाने अगर सुव्यवस्थित ढंग से नहीं संचालित होता है तो रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा गठित मठ को भंग कर दिया जाएगा और अधिक परिस्थितियों, अनुशासन, गण वेश , क्षति पहुंचने पर शासन / प्रशासन को लिखित रूप से अवगत कराया जाएगा रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन परिवार द्वारा किसी से कोई दान , दक्षिणा न मांगता है और न किसी को प्रेरित करता हैं जो भी स्वैच्छिक सहयोग राशि जमा करे तो वह मठ में रखे स्वयं सहायता शुल्क पात्र में रखें ताकि पात्र को पूर्ण होने अर्थात् श्रद्धा से प्राप्त होगा वह मठ में लगा दिया जाएगा और जो सज्जन इश्छुक़ वो ऑनलाइन क्यू आर कोड द्वारा दे और संगोष्ठी में भाग लेने वाले अभ्यर्थियों के भाग लेने पर राष्ट्रीयकृत बैंक की शाखा में जमा करे शुभेच्छु सौजन्य से - रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन परिवार

रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन परिवार के उक्त बिंदु ध्यान दें

1. पाठ्यक्रम की वीडियो अपलोड करें लेकिन कोई भी इसको देखने से पहले भुगतान क्यू आर कोड से जुड़ी हो भुगतान के उपरान्त देख सुन सकते है अन्यथा नहीं 2. कोई भी सज्जन जुड़े तो व्हाट्स ऐप लिंक दे ताकि वह ऑनलाइन की ज्वाइन लिंक ले और व्हाट्स ऐप से जुड़ जाए 3. ऐसी व्यवस्था करे ई मेल पोर्टल साइट से जुड़े और मेल से उसी प्लेटफार्म पर टाइप करे और सूचना ईमेल आ जाएं 4. ऑनलाइन क्लास में दिए गए कोर्स को चेक लिस्ट से जोड़ दे ताकि मार्कशीट सीधे संस्कृत में जनरेट कर सकें लेकिन सहयोग राशि क्यू आर कोड पर भुगतान के उपरांत होने के बाद ऐसी व्यवस्था करने में सहयोग दे 5. स्वेच्छा से सहयोग राशि क्यू आर कोड पर ही दे 6. विषयों को आवेदन फॉर्म से जोड़े जो आपको शीघ्र भेज दिया जाएगा पहले सारे कॉलम भरे सबमिट से भुगतान दे 7. कोई भी सूचना सीधे कंप्यूटर ड्राइव से सीधे तौर पर सलेक्ट करे और अपलोड हो जाए 8. मठ की ईमेल अलग दे केवल जानकारी हेतु मठ से सूचना केवल अलग रहे एक लोगो रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन का अलग और मठ का टैब अलग रहे कॉपीराइट के अधीन कोई भी वीडियो अवधि 30 मिनट से अधिक न हो 9. फेसबुक का दो पेज बनाए रामायण वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन और दूसरी मठ के लिए 10. किसी अन्य संस्थान की कॉपी कैट न करे और यूट्यूब चैनल बना दे सीधे इकॉन पर पर क्लिक कर चैनल पर पहुंचे 11. किसी भी प्रकार की कॉपी पेस्ट या वीडियो डाउनलोड करने की व्यवस्था बंद करे शेष लिंक दे कर चेक करवा दे तब आगे के सुझाव दे या प्राप्त कर ले लोगो मठ का ही लगा दे

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११ || विद्या ददति विन्यं || ११

११ || ॐ श्री पद्मकमलम् ज्ञानकोशम् || ११

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ॐप्रणव

ॐ || श्री गणेशाय नमो नमहा ||

ॐ || श्री ॐ सत्य ॐ शाचिदानंद ॐ रुपये ॐ परमात्मने ॐ नम्हः ||

हमारे बारे में संक्षिप्त प्राचीन वैदिक और सनातन संस्कृति के पुनः सकारात्मक ‘शुभारम्भ’ के रूप में रा० वै० एजुकेशन फाउंडेशन के गठन से पूर्व का संक्षिप्त इतिहास आप सभी के साथ उन स्मृतियों को संवाद के माध्यम से साझा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके लिए रा०वै०एजु०फाउंडेशन आप सभी आगंतुकों, पूज्यनीय बैकुंठवासी श्री मातापिता, श्री गुरुजनों, श्री शास्त्रियों, श्री आचार्यों, श्री महोपाध्याय, श्री विद्यावाचस्पति तथा जनपद खीरी के ज्ञानपिपासु नागरिकों का आभारी रहेगा। इसका प्रारम्भिक रूप “श्री रामायण फाउंडेशन” के नाम से संचालित था। तत्पश्चात जनजागरण के उद्देश्य से इसकी मुख्य अवधारणा रही कि वैदिक एवं सनातन संस्कृति की धारणाओं को व्यवहार में लाया जाए और वर्तमान समय में स्वैच्छिक अध्ययन के लिए प्रेरित किया जाए। इसी कारण यह “रामायण फाउंडेशन” के नाम से कार्य करती रही। इसके द्वारा श्री हनुमान जी के मंदिरों में स्वेच्छा से श्रीरामचरितमानस की प्रतियां स्थापित करवाई गईं, सनातन पर्वों एवं जयंतियों का आयोजन किया गया तथा उनमें प्रतिनिधित्व और सहभागिता की गई। उस समय किसी भी प्रकार का दान, दक्षिणा या धनार्जन स्वीकार नहीं किया जाता था और न ही इसके लिए किसी को प्रेरित किया जाता था। यह संस्थान प्रतिभागियों के श्रमदान, समयदान और प्रज्ञादान के सहयोग से संचालित होता था। प्रारम्भ में इसका प्रतीक एक वृत्ताकार चिह्न था, जिसमें “रामायण फाउंडेशन” अंकित था और चारों ओर “हमारी आध्यात्मिक विरासत” लिखा हुआ था। यह आज भी विद्यमान है। अथर्ववेद (४.७.१) में अंकित काशी का वर्णन “ज्ञान और मोक्ष की नगरी” के रूप में मिलता है। इस संस्थान की प्रारम्भिक स्थापना विक्रम संवत २०७८, दिनांक १७ पौष, कृष्ण पक्ष नवमी, उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र को श्री हनुमान जी मंदिर में की गई थी। यह स्थापना बिना किसी पंजीकरण के केवल आध्यात्मिक कार्यों की पूर्ति हेतु की गई थी। इस शुभारम्भ में श्री सत्यप्रकाश मिश्र (पुरोहित), श्री मनोज पाण्डेय (पुरोहित) और श्री अखिलेश पाण्डेय ने श्रीरामचरितमानस की प्रतिमा स्थापित कर कार्य आरम्भ किया। इसका प्रथम उद्देश्य समाज के प्रत्येक वर्ग तक श्रीरामचरितमानस का अध्ययन, पाठन और जीवन में आचरण कराना था। इसके उपरांत श्री हनुमान मंदिर प्रांगण में प्रत्येक मंगलवार को श्रीहनुमान चालीसा का निःशुल्क वितरण निजी कोष से किया गया। निर्धन कन्याओं को पुस्तकों और लेखन सामग्री का वितरण किया गया। कुष्ठ रोगियों को भोजन वितरण किया गया तथा बसंत पंचमी के अवसर पर ज्ञानदायिनी माता सरस्वती का पूजन-अर्चन आयोजित किया गया। श्रीराम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा दिवस पर लगभग ढाई हजार दीप प्रज्वलित कर “छोटी दीपावली” के रूप में आयोजन किया गया। तत्पश्चात लखीमपुर के मंदिरों, मठों और शक्तिपीठों के पुरोहितों से संपर्क कर उन्हें सम्मानित किया गया तथा उनके सहयोग से संस्थान की उचित वृद्धि हेतु संवाद किया गया। संस्थान के कार्यक्रमों में वैदिक अनुष्ठान एवं पूजन, वैदिक गणित, सूर्यसिद्धांत, प्रायोगिक अध्ययन, योग अध्ययन एवं पंचांग अध्ययन जैसे विषयों पर संवाद आयोजित किए गए। इसके साथ-साथ काशी, वृन्दावन, मथुरा, श्रीकृष्णभावनामृतसंघ (कानपुर, मुंबई, वृन्दावन), गीता प्रेस गोरखपुर आदि से प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह भी किया गया। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। वर्तमान में संस्थान “रामायण वैदिक शिक्षा फाउंडेशन” के तत्वाधान में “संगोष्ठी” नामक कार्यक्रमों के माध्यम से विस्तृत किया जा रहा है। हाल ही में यह अपने पुराने कार्यालय से नवीन भवन में स्थानांतरित किया गया है। इसका नवरात्रि वर्ष २०२५ में कलश स्थापना एवं घटस्थापना के साथ शुभारम्भ होगा। कलश स्थापना का मुहूर्त – २२ सितम्बर, प्रातः ६:०९ से ८:०६ बजे तक दोपहर अभिजीत मुहूर्त – ११:४९ से १२:३८ बजे तक इस प्रकार शारदीय नवरात्रि से संस्थान का विधिवत शुभारम्भ किया जाएगा।

प्रथमः संस्थापकहा० पार्षदहः-

सबसे पहले इस संस्थान के पार्षद ब्रह्मलीन वैद्य श्री तारा चन्द दीक्षित जी रहे। आपने अपनी शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पूर्ण की थी। उससे पूर्व आप "छोटी काशी" के नाम से विख्यात गोला गोकर्णनाथ नगर (जनपद लखीमपुर खीरी) के निवासी थे। आपको प्रारम्भिक प्रेरणा और मार्गदर्शन आपके पूज्यनीय गुरुजी, वैद्य श्री पुरुषोत्तम जी से प्राप्त हुआ। आपने उनके साथ रहते हुए रोगनालय कार्यों को सीखा तथा चिकित्सा विज्ञान की प्रारम्भिक जानकारी अर्जित की। तदुपरान्त, संस्कृत विषय में उत्तीर्ण परीक्षा के आधार पर आपने अपनी चिकित्सकीय शिक्षा को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च अंक सहित पूर्ण किया। अपने आचार-विचार और चिंतन की शैली के कारण आप आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से विशेष रूप से प्रभावित रहे। अपने जीवन काल में आपने आयुर्वेदिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया तथा उनके आधार पर एक विशेष रस (औषधि) का निर्माण किया। किंतु दुर्भाग्यवश यह औषधि कुछ अनुचित व्यक्तियों द्वारा आपके रोगनालय से चोरी हो गई। ब्रह्मलीन (वैद्य-बाबा जी) श्री तारा चन्द दीक्षित जी अपने संपूर्ण जीवन में प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जप और हवन करते रहे।

मा० विद्यापति शर्वस्य सह पार्षदैः महाभारत 3. 13. 14. -

जिसके पश्चात उनके पुत्र ब्रह्मलीन आर्य श्री स्वराज्य प्रकाश दीक्षित जी ने कार्यभार संभाला। संस्कृत पार्षद के रूप में ब्रह्मलीन श्री स्वराज्य प्रकाश दीक्षित जी ने संस्थान के कार्यों को आगे बढ़ाया। इसमें परमपूज्यनीय (दादी जी) ब्रह्मलीन सुमित्रा देवी दीक्षित जी का अत्यंत महत्वपूर्ण और सराहनीय योगदान रहा। उनके श्रीचरणों का स्पर्श कर हम सभी स्वयं को धन्य मानते हैं। परमपूज्यनीय (दादी जी) ब्रह्मलीन सुमित्रा देवी दीक्षित जी ने ज्ञान के पुंज को एक नवीन दिशा प्रदान की। उनके परामर्श से ब्रह्मलीन श्री स्वराज्य प्रकाश दीक्षित जी ने शिक्षा अर्जन में निरंतर प्रगति की। आपने आगरा विश्वविद्यालय के केंद्रीय हिंदू कॉलेज से भूगोल और अर्थशास्त्र विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास किया। इस अध्ययन के दौरान आपको भूगोल से संबंधित मानचित्रों का निरूपण, भूगोलिक यंत्रों का प्रयोग और उनके आधार पर विवेचन करने का विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त आपने बी.एड. और विधि (कानून) की शिक्षा भी प्राप्त की। परमपूज्यनीय (दादी जी) के प्रभाव स्वरूप आपने श्रीरामचरितमानस और श्रीमद्भगवद्गीता का गहन अध्ययन एवं स्वाध्याय किया। शिक्षा परिषद में उच्च पद पर सुशोभित होकर आपने जनसामान्य पर अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ी। साथ ही, आप शांतिकुंज शक्तिपीठ (हरिद्वार), गीता प्रेस (कलकत्ता एवं गोरखपुर) जैसे पवित्र संस्थानों से निरंतर जुड़े रहे और उनसे प्रेरणा प्राप्त करते रहे।

पार्षद कार्यनी, ऋग्वेद, वाजसनेयिसम्हिता एन०पी० पञ्चम, 62. 148.

उनके साथ ब्रह्मलीन आचार्या श्रीमती शांति देवी जी ने भी ब्रह्मलीन आर्य श्री स्वराज्य प्रकाश दीक्षित जी के ज्ञान का अनुसरण करते हुए शांतिकुंज शक्तिपीठ में प्रत्येक रविवार को जाना प्रारम्भ किया। उनका रुझान विशेष रूप से ॐ गायत्री मंत्र की साधना में लग गया। आपकी समस्त शैक्षिक यात्रा कानपुर विश्वविद्यालय, जनपद कानपुर से हुई। आपने अर्धचिकित्स्य पाठ्यक्रम किंग जॉर्ज आयुर्विज्ञान संस्थान से पूर्ण किया। तत्पश्चात आपका नियुक्ति स्थल मण्डल आगरा के "बहा" नामक स्थान पर हुआ। इसके बाद आपने कला वर्ग से कानपुर विश्वविद्यालय से विधि (एल.एल.बी.) की शिक्षा प्राप्त की तथा प्रयाग महिला विद्यापीठ से सन् 1964 में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर उत्तीर्ण हुईं। आपकी गहन रुचि वैदिक साहित्य में भी रही। ब्रह्मलीन आर्य श्री स्वराज्य प्रकाश दीक्षित जी के मार्गदर्शन में आपने विविध प्रकार की जड़ी-बूटियों का ज्ञान अर्जित किया। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए आप भगवान देवादिदेव महादेव की पूजा-अर्चना और वैदिक कर्मकाण्डों का पालन करती रहीं। जीवन के उत्तरार्ध में मधुमेह की गंभीरता के कारण आपका देहावसान हुआ, किन्तु आपने अपने जीवनकाल में संस्थान को पुष्पित-पल्लवित करने हेतु अपना सम्पूर्ण आर्थिक, मानसिक और बौद्धिक सहयोग प्रदान किया। आपके ही अथक प्रयासों और योगदान के कारण यह रामायण वैदिक शिक्षा फाउंडेशन अस्तित्व में आ सका। पूज्यनीय माता श्री शांति देवी जी का योगदान संस्थान के आधुनिकीकरण, विद्या-विस्तार और इसे सबल बनाने में अविस्मरणीय है। आपके जीवनकाल में संस्थान हेतु भूमि प्रदान की गई, जिसमें विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक, वैदिक विज्ञान संबंधी पुस्तकालय एवं वाचनालय स्थापित किए गए। समस्त उपादानों को पूर्ण करने में आपका स्थान विद्यादायिनी स्वरूप में सदैव आदरणीय रहेगा। आज रामायण वैदिक शिक्षा फाउंडेशन का जो स्वरूप है, वह आपके ही स्मृतिशेष प्रयासों और प्रेरणा का प्रत्यक्ष परिणाम है।

(पार्षद):— रामातापनिव उपनिषद् ३१४ -

पूजनीय माता जी एवं पूज्यनीय पिता जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन के अनुरूप कु. रूचि दीक्षित ने भी समाज एवं शिक्षा क्षेत्र में अपने कार्यों का शुभारंभ किया। आप वर्तमान में अधिवक्ता उच्च न्यायालय, लखनऊ में कार्यरत हैं। प्रारम्भिक शिक्षा के उपरांत आपने एंग्लो वैदिक पाठशाला, जनपद कानपुर में कला वर्ग से क्लासिकल मूर्तिकला का अध्ययन पूर्ण किया। तत्पश्चात बनस्थली विद्यापीठ, जनपद टोंक (राजस्थान) में प्रवेश लेकर उच्च शिक्षा अर्जित की और ज्ञान के शिखर तक पहुँचीं। आपने ललित कला मठ के प्रांगण में आयोजित विभिन्न कलात्मक प्रतियोगिताओं में भाग लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया और अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। बाद में, एक सामान्य सभा आयोजन के दौरान आपने स्वेच्छा से अपने पद से त्यागपत्र देकर पदमुक्ति ग्रहण की। आपके इस निर्णय एवं दीक्षा-प्रक्रिया में पूज्यनीय माता जी और पूज्यनीय पिता जी का सहयोग एवं प्रेरणा अत्यंत महत्वपूर्ण रही। आपके जीवन के वे क्षण, जब माता-पिता के आशीर्वाद और सान्निध्य में आपने शिक्षा एवं संस्कार की दीक्षा ग्रहण की, वे अविस्मरणीय और सदैव स्मरणीय रहेंगे।

(पार्षद)- हरिवास्म्सा संस्करण कलकत्ता ७२५२ से उल्लेखित है -

बैकुन्ठपुरी श्री (डॉ.) श्रीकृष्ण दुबे ‘जनसेवी’, निवासी जनपद कानपुर एवं उन्नाव, ने विद्या-अध्ययन की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन इस आदर्श का प्रतीक रहा कि “विद्या ददाति विनयम्”। वे स्वयं अपनी दीक्षा में पारंगत थे तथा माता सरस्वती जी के परम वरदान से विभूषित थे। आपने जीवन में दस विषयों में परास्नातक की उपाधि प्राप्त कर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया। रामायण वैदिक शिक्षा फाउंडेशन के अंतर्गत पुस्तकालय एवं वाचनालय की स्थापना में आपका विशेष योगदान रहा। पुस्तकों के चयन और ज्ञान-विस्तार के लिए आपका व्यक्तित्व सदैव विशिष्ट एवं गुणवान माना गया। आपका अभाव आज भी एक गहरी रिक्तता का अनुभव कराता है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, चिकित्सा, विधि, कला एवं साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में आपने सक्रिय योगदान दिया। आपका जीवन लोकसेवा और जनसेवा का आदर्श उदाहरण रहा। आपने भारत के राष्ट्रपति पद के निर्वाचन हेतु कानपुर जिला निर्वाचन कार्यालय में आवेदन किया था। यद्यपि चुनाव में सफलता नहीं मिली, परन्तु आपका सतत प्रयास और सेवाभाव अनुकरणीय रहा। जरा अवस्था में दमा जैसी लंबी बीमारी के कारण आप पंचतत्व में विलीन हो गए। आज भी एक दक्ष, ज्ञानी और लोकसेवी व्यक्तित्व का अभाव गहन खेदजनक है।

· परिकारा परसदा (परिक्रमा परिषद्) अर्थः परिचारक ॐ शिव जी के उपासकों हेतु प्रयोगअर्थ-

वर्ष श्रदेय (डॉ.) ऐ. कुमार दीक्षित ने “ॐ श्री सत्यम् शिवम् सुन्दरम्” को पुनः अंगीकार करते हुए इस अपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाया। वे प्रयास कानपुर से दीक्षा उप-चिकित्सकीय नेत्रालय क्षेत्र में सक्रिय रूप से सेवा कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने चिकित्सकीय पुस्तकों के साथ-साथ हमारी वैदिक–आध्यात्मिक विरासत को भी संगणकीय (डिजिटल) नवनवीनता के साथ परिपूर्णता प्रदान करने का संकल्प लिया। संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वे विभिन्न अनुभागों की स्थापना और संचालन में आज भी तन-मन-धन से निरंतर प्रयासरत हैं। इनमें विशेष रूप से निम्नलिखित संगोष्ठियाँ उल्लेखनीय हैं— 1. संस्कृत संगोष्ठी – “प्रवेशिका” इसका मुख्य लक्ष्य संस्कृत लिखना और बोलचाल की भाषा सिखाना है। इसमें व्याकरण को विशेष स्थान दिया गया है, क्योंकि व्याकरण संस्कृत भाषा को संदर्भित करता है और वेदों के साथ अध्ययन किए जाने वाले छह अतिरिक्त वेदांगों में से एक है। यह शब्दों और वाक्यों के सही प्रयोग को स्थापित करने हेतु संस्कृत व्याकरण के नियमों और भाषाई विश्लेषण से संबंधित है। 2. नाट्यशास्त्र संगोष्ठी – “प्रवेशिका” इस संगोष्ठी का उद्देश्य प्राचीन भारतीय परंपरा में निहित नाट्यशास्त्र का अध्ययन और संरक्षण करना है। इसमें नाटक, नृत्य, संगीत (मृदंग, वीणा, करतल अर्थात मंजीरा) आदि प्रदर्शन कलाओं को प्राचीन शास्त्रीय पद्धति के अनुरूप निपुण आचार्यों के मार्गदर्शन में प्रस्तुत किया जाता है। यह संगोष्ठी नाटकों की रचना, रंगमंच के निर्माण एवं प्रदर्शन तथा काव्य रचनाओं के नियमों के अध्ययन पर भी केंद्रित है। संस्कृति संगोष्ठी के अंतर्गत जैसे श्रीरामलीला समिति से जनसंपर्क कर संवाद एवं प्रस्तुति की जाती है। इस समस्त कार्य को “संस्कृत भाषा में मुद्रित सम्मान पत्र” के रूप में व्यवस्थित किया गया है।

(श्रीमहाकाव्य इतिहास-संगोष्ठी) -

शिवपुराण (२.४.४) में उल्लिखित है कि जब कार्तिकेय ने नंदीश्वर से संवाद किया, तब उन्होंने कहा— “हे नंदिकेश्वर! मैं पर्वतों के स्वामी (महादेव) की पुत्री से कभी भी पृथक नहीं हुआ हूँ, वे मेरी माता स्वरूपा हैं। जैसे ये महिलाएँ पुण्य अनुष्ठानों के आधार पर प्रतिष्ठित हैं, वैसे ही आप भी शिव के प्रिय सेवक होकर शिवपुत्र के समान मेरे लिए पूज्य हैं। आपको स्वयं शिव ने भेजा है। मैं आपके साथ चलूँगा और देवताओं का दर्शन करूँगा।” ऐसा कहकर कार्तिकेय ने कृतिकाओं से विदा ली और तत्पश्चात वे शिव के सेवकों—शंकर-पार्षदों—के साथ प्रस्थान कर गए। इन विचित्र रूपधारी शिवगणों ने त्रिपुरा के युद्ध में तारक और माया के साथ मिलकर वीरतापूर्वक युद्ध किया। पुराण (Purāṇa) संस्कृत साहित्य का वह अद्वितीय भंडार है जो प्राचीन भारत की विशाल सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। इसमें ऐतिहासिक किंवदंतियाँ, धार्मिक अनुष्ठान, विविध कलाएँ और विज्ञान सुरक्षित हैं। अठारह महापुराणों में लगभग चार लाख से अधिक श्लोक समाहित हैं, जो कम-से-कम कई शताब्दियों ईसा-पूर्व तक प्राचीन माने जाते हैं। इन्हीं गौरवशाली परंपराओं के अनुरूप इस विवेचन को एक “संस्कृत भाषा में मुद्रित सम्मान-पत्र” के रूप में व्यवस्थित किया गया है।

पर्षदि भवं पार्षदम् संगोष्ठी-

अर्थात् परिषद में परामर्शदाता होने का तात्पर्य विद्वानों की सभा में चर्चा और स्वीकृत सिद्धांतों या व्याख्याओं का संचालन करना है। यह शब्द निरुक्ति या शब्दों की व्युत्पत्ति पर आधारित कृतियों के साथ-साथ प्रातिशाख्य प्रकार की कृतियों के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है। पार्षदकृतिरेषा तत्रभवतां नैव लोके नान्यस्मिन्वेदे अर्ध एकारः अर्ध ओकारो वास्ति अर्थात् यह सहयोगी का आंकड़ा है। न तो आपकी दुनिया में और न ही किसी अन्य वेद में आधा ॐकार या आधा ओकारा है। पार्षद भगवान का एक शाश्वत सहयोगी है, जैसा कि श्री बृहद्भागवतमृत में वर्णित है। वैष्णववाद हिंदू धर्म की उस परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जो विष्णु को सर्वोच्च भगवान मानकर पूजती है। शाक्त और शैव परंपराओं की तरह, वैष्णववाद भी एक स्वतंत्र आंदोलन के रूप में विकसित हुआ, जो विष्णु के दशावतारों की व्याख्या के लिए प्रसिद्ध है। पार्षदसंहिता एक प्राचीन पंचरात्र संहिता है, जिसका उल्लेख पुरुषोत्तमसंहिता में किया गया है। यह ग्रंथ लगभग 1800 श्लोकों का है और मुख्यतः मंदिर निर्माण और पंचरात्र पुरोहित समुदाय के व्यावहारिक कार्यों को समर्पित है। पुरुषोत्तमसंहिता अपने विषयों का संक्षिप्त एवं स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करती है और इसे अन्य ग्रंथों जैसे अनिरुद्धसंहिता और कपिञ्जलसन्हिता से तुलना की जा सकती है। पार्षदसंहिता का उल्लेख मार्कण्डेयसंहिता में भी मिलता है। यह लगभग 2200 संस्कृत श्लोकों का ग्रंथ है, जो मंदिर निर्माण, प्रतिमा विज्ञान, पूजा, उत्सव और प्रायश्चित से संबंधित है। विष्णुसंहिता के अध्याय 2 में पंचरात्र दर्शन से जुड़े उपविभाजनों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ 2600 श्लोकों में लिखा गया है और इसमें औपग्यान एवं सिद्ध सुमति के बीच कथात्मक संवाद के माध्यम से पंचरात्र विषयों का विवेचन किया गया है। पंचरात्र हिंदू धर्म की वह परंपरा है जिसमें नारायण की आराधना की जाती है। यह वैष्णव धर्म के निकट है और इसमें विभिन्न आगम एवं तंत्र सम्मिलित हैं। संस्कृत शब्दकोश में पार्षद का अर्थ है साथी, सहयोगी, अनुचर, देवता का दल या अनुचर। पार्षद को सभा में उपस्थित व्यक्ति, दर्शक, मूल्यांकनकर्ता या किसी विशेष व्याकरण विद्यालय द्वारा प्राप्त पाठ्य-पुस्तक के रूप में भी समझा जाता है। महाभारत, सुश्रुत, हरिवंश, भागवतपुराण और ललिता-विस्तार जैसे ग्रंथों में पार्षदों का उल्लेख मिलता है। आरंभिक ग्रंथों में पार्षदक, पार्षदादश, पार्षदपरिशिष्ट, पार्षदप्रवर, पार्षदसंहिता, पार्षदवृत्ति, पार्षदव्याख्य आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। पार्षद शब्द का भाव परमेश्वर के अंग, उपांग, अस्त्र और सहयोगी से भी संबंधित है। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के अनुसार, कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति भगवान के उस अवतार की पूजा करते हैं जो निरंतर कृष्ण के नामों का जप करता है। भले ही उनका रंग श्याम वर्ण का है, फिर भी वे स्वयं कृष्ण हैं। उनके साथ उनके सहयोगी, सेवक, अस्त्र-शस्त्र और गोपनीय साथी होते हैं। श्रीमद्भागवत (10.8.13) में गर्गमुनि द्वारा नंद महाराज से कही गई बातें सिद्ध करती हैं कि भगवान कलियुग में श्यामवर्ण में प्रकट हुए हैं, जबकि पूर्व युगों में श्वेत, लाल और सुनहरे रंग में प्रकट हुए। इस प्रकार भगवान के सभी अवतार कृष्ण में समाहित माने जाते हैं और इन्हें युगावतार कहा जाता है। भगवान अपने अंग, उपांग, अस्त्र और पार्षदों के साथ प्रकट होते हैं। परमेश्वर के अंग अत्यंत मनोहर और शक्तिशाली होते हैं, इसलिए उन्हें अलंकार और सहयोगी भी कहा गया है। अनेक महापुरुषों ने इस रूप के दर्शन किए हैं। भक्तगण संकीर्तन-यज्ञ और यज्ञ द्वारा उनकी पूजा करते हैं। संकीर्तन शब्द का तात्पर्य कृष्ण के पवित्र नामों का सामूहिक उच्चारण और स्तुति है, जो सिद्धि प्राप्ति का साधन माना जाता है। महाभारत के विष्णुसहस्रनाम में भगवान के सुवर्णवर्ण, हेमअंग, सुन्दर, चन्दनबल, संन्यासलीला, शमगुण और शांत गुणों का वर्णन मिलता है। भूमिपति दास द्वारा रचित चैतन्य भागवत गौड़ीय वैष्णव परंपरा का महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो चैतन्य कृष्ण के प्रत्यक्ष अवतार के रूप में वर्णन करता है। इस ग्रंथ में गौड़ीय-भाष्यकारों और परम कृपालु श्री श्रीमद् भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज के अध्याय सारांश शामिल हैं। इस प्रकार, विभिन्न प्रकरणों और संगोष्ठियों के माध्यम से, श्री बृज भूषण जी, श्री राजेश दीक्षित जी और अन्य स्वयंसेवकों के मार्गदर्शन में संस्कृत भाष्यकार और पार्षदों द्वारा वैदिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान का संरक्षण किया जा रहा है। इसके लिए पुस्तकों का संस्कृत और हिंदी अनुवाद, प्रायोगिक अध्ययन, संगोष्ठियों और धार्मिक कार्यकर्मों के आयोजन के माध्यम से ज्ञान का विस्तार सुनिश्चित किया गया है। रा० वै० एडू० फाउंड० के तत्वाधान में संचालित यह कार्य समय-समय पर वैदिक और अध्यात्मिक विरासत के संरक्षण, शोध और संवाद के माध्यम से निरंतर प्रगतिशील है।

विद्या वाङ्मय संगोष्ठी-

विद्या वाङ्मय का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का भंडार प्रस्तुत करना है। यह ज्ञान का एक विशाल संग्रह है, जिसमें विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है। इसके माध्यम से अध्ययनरत व्यक्ति न केवल सामान्य ज्ञान प्राप्त करता है, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से भी समृद्ध होता है। विद्या वाङ्मय में देवी-देवताओं, पूजा-पाठ, अनुष्ठानों और धार्मिक परंपराओं से संबंधित ज्ञान का विशेष स्थान है, जो अध्ययनकर्ता को धर्म, संस्कार और आध्यात्मिक मूल्य समझने में सहायता करता है। इसके साथ ही, विद्या वाङ्मय में दर्शन, विज्ञान, कला और अन्य शास्त्रीय विषयों का समावेश किया गया है, जिससे यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि समग्र ज्ञान का स्रोत बन जाता है। इस प्रकार, विद्या वाङ्मय अध्ययनकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक होने के साथ-साथ समाज में सांस्कृतिक और वैदिक विरासत के संरक्षण का माध्यम भी है।

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